गुरुवार, 27 मई 2010

बैस का बयान, बीजेपी में बगावत

तपेश जैन
रायपुर। रायपुर लोकसभा क्षेत्र से छह बार जीतने वाले भारतीय जनता पार्टी के सांसद रमेश बैस सुलझे हुए राजनेता माने जाते हैं और उनसे यह उम्मीद की जाती है कि वे पार्टी के अनुशासन को समझते होगें लेकिन पिछले कुछ समय से वे लगातार अपने बयानों से यह प्रदर्शित कर रहे हैं कि प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को वे अब बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है इसके लिए उन्हें काडर और अनुशासित पार्टी के नियमों का उल्लघंन ही क्यों ना करना पड़े। राजनीति के जानकार जानते हैं कि बीजेपी में संगठन से असहमति विरोध और विरोध को बागवत समझा जाता है। सांसद बैस के बयान को भी बीजेपी में बगावत समझा जा रहा है। उनके हाल ही में पत्रकार वार्ता में कही गई बातें यह स्पष्ट कर देती है कि वे अब आर-पार की इच्छा रखते हैं।
गौरतलब है कि यह कोई पहला अवसर नहीं है जब श्री बैस ने सरकार के खिलाफ बयानबाजी की हो। गाहे-बगाहे वे मुख्यमंत्री को यह अहसास दिलाने का प्रयास कर चुके है कि वे छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ नेता है और वे ही मुख्यमंत्री पद के योग्य है। सीएम पद की आकांक्षा में उन्होंने हाल ही में प्रदेश संगठन अध्यक्ष पद की मांग भी की थी। जिसकी सुनवाई न तो प्रदेश संगठन ने की और ना ही केन्द्रीय स्तर पर विचार हुआ। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने हर मौके पर चतुराई से उनके बयानों का जवाब देकर निरूत्तर ही किया है। श्री बैस के आरोपों का भी उन्होंने नई दिल्ली में उत्तर दिया कि सबकी सुनता हूं और कैसे उन्होंने कहा यह मिलकर पूछूंगा।
यहां याद दिलाना लाजमी होगा कि तीन साल पूर्व तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष शिवप्रताप सिंह ने भी इसी तरह का आरोप लगाया था कि सरकार के मंत्री विधायकों तक की नहीं सुनते है। तब मामला ये था कि श्री सिंह सरगुजा विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष थे और अध्यक्ष मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह की अनुपस्थिति में आयोजित एक बैठक की अध्यक्षता मंत्री रामविचार नेताम ने कर दी तो श्री सिंह इस बात को गांठ बांधकर बिफर पड़े थे? पार्टी फोरम की जगह शिवप्रताप सिंह ने मीडिया का सहारा लिया और मंत्रियों को सफेद हाथी तक कह दिया। बवाल तो मचना ही था क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष ने सार्वजनिक रूप से सरकार की साख पर प्रहार किया था। संगठन ने श्री सिंह की इस गुस्ताखी पर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया था। श्री बैस ने फिर वहीं बात दुहराई है। लेकिन वे प्रदेश अध्यक्ष नहीं है। संगठन ने उनकी अध्यक्ष बनने की मांग का इरादा भांप लिया था सो इतने तरीके से उन्हें हाशिए पर ढकेल दिया गया कि वे फुंफकार भी नहीें सके।
श्री बैस राजनीति के माहिर खिलाड़ी समझे जाते हैं लेकिन वे गलतियां अजीत जोगी की तरह कर रहे हैं। श्री जोगी ने पिछड़े वर्ग का राग अलापा तो आदिवासी वर्ग उनसे दूर हो गया और कांग्रेस का गढ़ छत्तीसगढ़ पार्टी के हाथों से दूर हो गया। श्री बैस भी लगातार इस बात को उछार रहे हैें कि प्रदेश में आदिवासी से यादा पिछड़े वर्ग के लोग है और पिछड़े वर्ग के नेताओं को सत्ता में यादा हिस्सेदारी मिलनी चाहिए। श्री बैस के इस राजनीति से आदिवासी नेता खासे नाराज हैं और उनके खिलाफ खड़े हो रहे है। मुख्यमंत्री के विरुध्द बयानबाजी के समर्थन में एक भी आदिवासी नेता यहां तक कि नंदकुमार साय भी श्री बैस के साथ नहीं है।
सत्ता संगठन और आदिवासी नेताओं के खिलाफ खड़े श्री बैस अपने ही जाल में फंस गए है। राजनीति के जानकार उनसे ये आशा नहीं रखते थे कि एक साथ वे सबके खिलाफ मोर्चा खोलकर खड़े हो जाएंगे। याद रहे कि संगठन के नेता ऐसे विरोधों को किस तरह दरकिनार कर नेता को हाशिए में डाल देते हैं खुद नेता को भी भनक नहीं लगती। श्री बैस प्रदेश कार्यकारिणी में कहां होगें ये तो भविष्य बतायेगा फिलहाल उनके बयानों को बासी कढ़ी में उबाल ही माना जा रहा है जो उनकी लोकप्रियता के गिरते ग्राफ को ही बताता है।

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