मंगलवार, 4 मई 2010

शिक्षा मंत्री के आदेश की धज्जियाँ

शासकीय हाईस्कूल फुण्डहर वर्तमान प्राचार्य के चलते अव्यवस्थाओं एवं भर्राशाही की दल-दल में फंस कर रह गया है। स्कूल शिक्षा मंत्री के स्पष्ट आदेश के बाद भी यहां के कर्मचारी एवं शिक्षकों को वेतन कभी भी समय में नहीं मिल पा रहा है। माह की प्रत्येक 20-25 तारीख तक वेतन मिलना इस विद्यालय की पहचान बन गया है। प्राचार्य पर शिक्षा मंत्री की इस घोषणा का कोई असर नहीं पड़ा, यहां आज भी वेतन समय से न मिलने का संकट कर्मचारी झेल रहे हैं। इस प्रकार मंत्री एवं उच्च कार्यालयों के आदेशों का पालन न करना प्राचार्य टी.आर. वर्मा की खूबी बन गया है।
ज्ञात हो कि शासकीय हाईस्कूल फुण्डहर में पूरे साल दो शिक्षकों को कार्यालय में बिठाकर वेतन भुगतान किया गया है। इनमें एक व्याख्याता एवं एक शिक्षक को मात्र दो-दो काल पीरियड देकर उन्हें शिक्षाकीय कार्य से पृथक रखा गया है। वही कुछ शिक्षक, व्याख्याताओं को चार-चार पीरियड लगातार देकर अध्यापन कार्य कराया जा रहा है। इस प्रकार प्राचार्य की भेदभाव पूर्णनीति स्पष्ट प्रतीत होती है। शाला में खुलेआम नियमों की धाियां उड़ाई जा रही है। हाईस्कूल में पदस्थ प्राचार्य टी.आर. वर्मा ने एक व्याख्याता का वेतन छुट्टी स्वीकृत हो जाने के बाद भी भुगतान नहीं किया है। सूत्रों से पता चला है कि अशोक पाण्डेय व्याख्याता का माह अगस्त से लेकर जनवरी तक पांच माह का वेतन आहरित नहीं किया गया है। चार-पांच माह का वेतन न मिलने से यह व्याख्याता आर्थिक तंगी से जूझ रहे है। पता चला है कि यहां कार्यरत कुछ अन्य शिक्षक-व्याख्याता के कुछ और भुगतनों को रोककर रखा गया है। प्राचार्य से बार-बार पत्र देकर निवेदन करने के बाद भी वेतन जैसे भुगतनों को रोककर रखा गया है। प्राचार्य का यह कृत्य अपने मातहतों को प्रताड़ित करने के उद्देश्य से किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर अपने फायदे के लिए विद्यालय में वर्षों से जमा राशि को उक्त प्राचार्य ने खाली कर दिया है। इस प्रकार उन्होंने कमीशनखोरी का धंधा चलाकर रखा है।
सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि इस विद्यालय में पढ रहे छात्र-छात्राओं से हजारों रुपए शुल्क के रुप में वसूले गए परन्तु आज तक छात्र-छात्राओं से ली गई राशि की रसीदें उन्हें प्रदान नहीं की गई है। इससे एक बड़े आर्थिक गोल-माल की आशंका से मना नहीं किया जा सकता है। विद्यालय में कितने विद्यार्थी पढ़ रहे है तथा कितने विद्यार्थियों से किस हिसाब से राशि वसूल की गई है इसका विधिवत लेखा जोखा नहीं रखा जा रहा है। आशंका तो यहां तक व्यक्त की जा रही है कि छात्रों से अधिक राशि वसूलकर विद्यालय के खातों में उतनी राशि जमा नहीं की जाती है। यह सब हेरा-फेरी एवं आर्थिक अनियमितता का जीता जागता उदाहरण है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें